⚙️ क्या भारत में EV थोपे जा रहे हैं?
⚙️ क्या भारत में EV थोपे जा रहे हैं?
IC इंजन का अंत या चीन की जंजीर?
📌 प्रस्तावना:
भारत सरकार पिछले कुछ वर्षों से इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को तेज़ी से बढ़ावा दे रही है। "स्वच्छ ऊर्जा", "ग्रीन फ्यूचर", और "आत्मनिर्भर भारत" जैसे नारों के बीच अब पेट्रोल और डीज़ल वाले इंजन यानी IC इंजन वाहनों को अप्रत्यक्ष रूप से हतोत्साहित किया जा रहा है।
लेकिन क्या यह बदलाव वास्तव में भारतीय जनता और देश के हित में है, या इसके पीछे कोई छिपा हुआ वैश्विक दबाव, बहुराष्ट्रीय लॉबी और चीन केंद्रित रणनीति है?
🏍️ EV अपनाना ज़रूरी या मजबूरी?
- कीमतों का भारी अंतर: EV स्कूटर ₹1.25 लाख से शुरू होते हैं, जबकि एक 125cc पेट्रोल स्कूटर ₹75,000 में आता है। EV कारें ₹12–₹16 लाख में हैं जबकि पेट्रोल कारें ₹6–₹9 लाख में।
- चार्जिंग का जाल नहीं, जंजाल: भारत के ज़्यादातर इलाकों में चार्जिंग स्टेशन नहीं हैं।
- बैटरी की लाइफ और खर्च: EV की बैटरी 4–5 साल में ₹80,000–₹2 लाख तक की हो सकती है।
🇨🇳 चीन पर निर्भरता: आत्मनिर्भरता की विडंबना
भारत में EV तकनीक के लिए इस्तेमाल होने वाले अधिकांश कंपोनेंट, खासतौर पर Lithium-Ion बैटरियां, Rare Earth Minerals और कंट्रोल यूनिट्स, चीन से आते हैं।
- दुनिया की 80% बैटरी सप्लाई पर चीन की पकड़ है।
- CATL, BYD जैसी कंपनियों का दबदबा EV क्षेत्र में है।
- भारत में बैटरी निर्माण अभी शुरुआती स्तर पर है।
क्या यह सचमुच “आत्मनिर्भर भारत” है, या “आयात आधारित भारत”?
🔧 IC इंजन और करोड़ों लोगों की रोज़ी-रोटी
EV के नाम पर IC इंजन को हटाना सिर्फ तकनीकी बदलाव नहीं है — यह भारत की अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करता है:
- लाखों मैकेनिक, गैरेज मालिक, स्पेयर पार्ट विक्रेता, तेल पंप कर्मचारी
- ट्रक ड्राइवर, ऑटो चालक, रेंटल टैक्सी सर्विस
- IC इंजन आधारित पार्ट्स मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री
इन लोगों की जीविका एक झटके में खत्म हो सकती है।
🧪 क्या EV सच में पर्यावरण के लिए बेहतर हैं?
- बिजली कहां से आती है? भारत की 70% बिजली अभी भी कोयले से बनती है।
- बैटरी वेस्ट का क्या होगा? EV बैटरियां विषैली होती हैं और रिसाइकलिंग सिस्टम विकसित नहीं है।
- निर्माण का कार्बन फुटप्रिंट: एक EV का निर्माण IC इंजन के बराबर या ज़्यादा प्रदूषण करता है।
🧭 अंतरराष्ट्रीय लॉबी और नीति-निर्माण का खेल
पश्चिमी देशों ने पहले Fossil Fuel पर निर्भरता बढ़ाई, अब जब उनका समय पूरा हुआ तो उन्होंने पूरी दुनिया को "EV अपनाओ" का मंत्र दे दिया। क्या भारत फिर से एक उपभोक्ता भर बन रहा है?
- IMF और World Bank के दबाव में नीतियाँ बन रही हैं।
- बड़े विदेशी EV ब्रांड्स भारत के बाज़ार में सक्रिय हो चुके हैं।
क्या भारत अपनी नीति स्वयं बना रहा है या किसी और के इशारे पर चल रहा है?
🔍 EV बनाम Hybrid विकल्प
सरकार ने Hybrids (EV+Petrol) पर कोई स्पष्ट नीति नहीं दी जबकि ये ज्यादा व्यावहारिक हैं।
- रेंज की समस्या नहीं होती
- ग्रामीण भारत के लिए बेहतर विकल्प हैं
- कम लागत पर तकनीकी संक्रमण संभव है
क्या EV को ही एकमात्र रास्ता बनाना बुद्धिमानी है?
📝 निष्कर्ष: तकनीक ज़रूरी है, लेकिन विकल्प और संतुलन भी
- EV को एक विकल्प के रूप में बढ़ावा देना चाहिए, मजबूरी की तरह नहीं।
- IC इंजन वाहनों के लिए भी BS7, हाइब्रिड जैसे अपग्रेड देने चाहिए।
- बैटरी निर्माण, रिसाइकलिंग और R&D में भारत को आत्मनिर्भर बनाना होगा।
📚 स्रोत (References):
- नीति आयोग – EV नीति रिपोर्ट
- Bloomberg NEF – Battery Supply Chain Index
- TERI India – EV Transition & Jobs Impact
- CNBC, ET Auto, LiveMint Articles
- Ministry of Heavy Industries Reports
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