💰 क्या 90 लाख की सालाना कमाई भी अब मेट्रो सिटी में नाकाफी है? जानिए क्यों फंसी है अपर मिडिल क्लास की ज़िंदगी

💰 क्या 90 लाख की सालाना कमाई भी अब मेट्रो सिटी में नाकाफी है?

बेंगलुरु और गुरुग्राम जैसे शहरों में आज भारत का ऊपरी मध्यम वर्ग एक गंभीर आर्थिक दबाव से जूझ रहा है। सालाना ₹90 लाख की कमाई के बावजूद लोग कह रहे हैं — “घर नहीं चल रहा।” यह किसी व्यक्तिगत परेशानी की बात नहीं बल्कि एक बड़ा सामाजिक ट्रेंड बन गया है।

📉 90 लाख की इनकम के बावजूद खर्चों का जाल

मान लीजिए ₹90 लाख सालाना यानी ₹7.5 लाख महीना की कमाई है। फिर भी खर्च इतना ज्यादा है कि बचत मुश्किल हो गई है।

खर्च का मदअनुमानित मासिक खर्च
टैक्स कटौती (30–39%)₹2.5 – ₹3 लाख
घर की EMI₹1.5 – ₹2 लाख
बच्चों की स्कूल फीस₹50,000 – ₹70,000
कार की EMI₹50,000 – ₹80,000
बीमा और हेल्थ खर्च₹30,000
मेड, बिजली, राशन आदि₹50,000+

💸 टैक्स का दबाव

भारत में हाई इनकम वालों पर टैक्स की दरें अधिक हैं। ₹90 लाख पर करीब 35% तक टैक्स देना पड़ता है। यानी लगभग ₹30 लाख सरकार को चला जाता है।

🏡 महंगे शहरों की महंगाई

बड़े शहरों में जीवन स्तर बनाए रखने के लिए खर्च काफी अधिक है:

  • 3 BHK फ्लैट की कीमत ₹2–4 करोड़
  • रेंट ₹70,000+ प्रति माह
  • बच्चों की स्कूल फीस ₹20,000+ प्रति बच्चा

🔁 Social Pressure: Lifestyle की दौड़

हर चीज़ Instagram-worthy चाहिए — बड़ा फोन, छुट्टियाँ, महंगे रेस्टोरेंट्स। EMI पर ही जिंदगी चल रही है।

🧠 मानसिक तनाव और संतुलन

  • Money Anxiety: पैसा होते हुए भी हमेशा कमी का डर
  • Work-Life Stress: फैमिली टाइम कम और काम का दबाव ज्यादा

✅ समाधान क्या हो सकता है?

  • अपनी आय के अनुसार खर्च करें
  • ज़रूरत और चाहत में फर्क करें
  • बजट बनाएं और उस पर टिके रहें
  • छोटे शहरों में वर्क फ्रॉम होम की संभावनाएं देखें

📖 निष्कर्ष

आज का ऊपरी मध्यम वर्ग भले ही दिखावे में खुश हो, लेकिन अंदर से आर्थिक और मानसिक रूप से दबाव में है। ₹90 लाख की कमाई अब वह स्थायित्व नहीं दे पा रही जो पहले देती थी।

"समस्या कमाई की नहीं, खर्चों की रफ्तार की है।"

📚 स्रोत:

  • CNBC TV18 रिपोर्ट
  • Economic Times Wealth
  • LiveMint Middle Class Report
90 लाख की कमाई और फिर भी आर्थिक संकट! जानिए मिडिल क्लास की असली जंग

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